Tuesday 10 April 2012

कई दिनों से सोच रहा हूँ...

कई दिनों से सोच रहा हूँ
कि तुम्हारे कांधों पे बांह डाल कर बैठूं
और धीरे से कह दूं
वो सब
जो मैं सोचता रहा हूँ
बीते कई सालों से...

कुछ गुनगुनाऊँ मैं
एक गीत ढूंढ पाऊँ मैं
और तुम सुन सको - वो
जो मैं कह नहीं पाया हूँ
सिर्फ गीतों में ढूँढा हूँ
और गुनगुनाया हूँ...

बेफिक्र निकलें हम
सड़कों पर
आवारा - यूँ ही
तुम्हारे हाथ कि छोटी ऊँगली
फंसा लूं अपनी ऊँगली में
और
तुम्हारी सीप सी आँखों में उट्ठे हर सवाल पर
एक तारा दिखा दूं - बहका दूं तुमको ||
कई दिनों से सोच रहा हूँ
साथ बैठूं तो
तुम्हारे कांधों पे बांह डाल दूं
और कह दूं ...

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