Wednesday 15 April 2015

गैर-जरूरी रिश्ते

कीमती जेवरों की तरह,
संदूक में कहीं भीतर
कपड़ों की तह में
सहेज कर रक्खे हुए

आसमान छूती
बुलंद जिंदगी की
जमीन की सतह से नीचे
नींव की तरह छुपे हुए

चौबीस घंटों के चक्र में
हफ्तों तक
कभी कभी महीनों और सालों भी
जिनकी जरूरत नहीं पड़ती

रोज़मर्रा की जिंदगी में
गैर-जरूरी से रिश्ते;
भले ही, याद नहीं किये जाते
होते हैं, बहुत जरूरी रिश्ते

वे बने रहते हैं
जरूरत की ज़मीन से कहीं बहुत नीचे
या कि आकाश से विस्तृत
हर तरफ - बहुत ऊपर
कभी, पीठ पर किसी भरी हथेली से,
समेटने को तैयार बाहों से
या कि बराबर से खड़े कद हों कोई,
कि दुनिया भर की जगह लिए कंधे

रोज़मर्रा की जिंदगी में
गैर-जरूरी से रिश्ते;
भले ही, रोज़ याद नहीं किये जाते
होते हैं, और बने रहते हैं
बहुत जरूरी रिश्ते ||

- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)

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