Wednesday 5 June 2013

ख्वाब पड़े है इधर उधर, और हैं हथेलियाँ दो ही ...

ख्वाब पड़े है इधर उधर, और हैं हथेलियाँ दो ही
कभी कुछ छूट जाता है, कभी कुछ छूट जाता है

हक़ीक़तों की ज़मी है सख्त बहुत पत्थर पत्थर
कभी कुछ टूट जाता है,कभी कुछ टूट जाता है

हरेक उम्मीद को कुछ कह के मैं समझा ही देता हूँ
कहीं कोई झूठ जाता है, कहीं कोई झूठ जाता है

तुम्हारे नाम को मैंने, दफनाया था बहुत गहरे
कभी कोई ढूंढ जाता है, कभी कोई ढूंढ जाता है

मना तो लूं मगर कब तक, वही नौ दस तरीके हैं
कभी कोई रूठ जाता है, कभी कोई रूठ जाता है

मेरे काँधे पे मेरे दोस्त कितनी बार जीतेंगे
मेरी आँखों के आगे आँख, कभी कोई मूँद जाता है
................................कभी कोई मूँद जाता है

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