Monday 13 May 2013

बहुत कठिन है ये दुनियादारी !

पूरे बिस्तर पर बिखरी हैं
बेतरतीब, गैर जरूरी चीज़ें
एक रूमाल, कल का अखबार
हिसाब की कापी, फोटो एलबम
और मोबाईल का चार्जर ।

और इनमें ही उलझ के
कहीं गुम जाती है मेरी नींद ...

खुद तो नहीं आये ये सब
तब मैं ही लाया और छोड़ दिया वहीँ
...अब आँखों में चुभते हैं ।

जब आँखों में नींद भरी हो
इन्हें देखना भी भारी लगता है,

फिर अचानक लगता है
उलझन यहाँ नहीं है...
कहीं और है
मुझे पहले ही
अपनी वस्तुस्तिथि का ज्ञान होना चाहिए ।

कहाँ मैं निपट ढोल-गंवार
किस्से कहानियों में जीने वाला
और कहाँ ये सयाने
वक़्त की समझ रखने वाले लोग ।

अब रिश्ते उलझ रहे हैं,
दायरा बहुत बढ़ गया है शायद
समेट ही लेता हूँ कुछ खुद को
ये तो सुलझने से रही ।बहुत कठिन है ये दुनियादारी !

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