Saturday 4 May 2013

मैं कैसे मान लूं कि है वही चाहत पहले वाली

घड़ी भर भी नहीं बोले, रहे घंटों तक संग मेरे
मैं कैसे मान लूं कि है वही चाहत पहले वाली ||

वो पहले तो मेरी बातों पे जैसे झूम जाते थे
मेरी आहट पे उनके रस्ते भी तो घूम जाते थे
वही अब हैं मेरी आवाज़ भी ना पहचान पाते हैं
रही ना शायद अब उनको कोई आदत पहले वाली ||

मेरी बातें मेरे सपने यही थे रात दिन कुछ दिन
के जैसे सांस भी लेना गवारा था ना मेरे बिन
और ये क्या है कि संग बैठे है फिर भी साथ नहीं हैं
मैं कैसे मान लूं कि है वही साथी पहले वाली ||

नहीं मिलती नज़र से यूँ नज़र के चैन आ जाये
नहीं मिलते हैं अब ऐसे सुबह से रैन आ जाये
मगर अब मिलते हैं ऐसे के जैसे रस्म हो कोई
नहीं मिलती मुझे मिलके वही राहत पहले वाली ||

घड़ी भर भी नहीं बोले, रहे घंटों तक संग मेरे
मैं कैसे मान लूं कि है वही चाहत पहले वाली ||

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