पत्थर उठा के मारा है
...और अब उनकी राह देखता हूँ
मैं पुष्प नहीं हूँ
पराग भी धारण नहीं करता
और इश्क हुआ है
शहद के कारीगरों से
वो भला क्यूँ आयेंगेमुझ तक
हमारा एक ही रिश्ता हो सकता है
... दंश का !
पत्थर उठा के मारा है
...और अब उनकी राह देखता हूँ ||
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
...और अब उनकी राह देखता हूँ
मैं पुष्प नहीं हूँ
पराग भी धारण नहीं करता
और इश्क हुआ है
शहद के कारीगरों से
वो भला क्यूँ आयेंगेमुझ तक
हमारा एक ही रिश्ता हो सकता है
... दंश का !
पत्थर उठा के मारा है
...और अब उनकी राह देखता हूँ ||
- नवीन
(... यूँ ही कुछ सोचता हूँ मैं)
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