Tuesday 16 April 2013

चिरप्रतीक्षित खिलौना

रोज़ शाम घर पहुँचते ही
वो दौड़ कर आ जाती
और गोद चढ़ जाती थी
कुछ लाये मेरे लिए ?
एक सवाल हर रोज़

मैं थका भी होता था
और खाली हाथ भी
बहका देता
और फिर
हमारा खेल शुरू हो जाता
और खेल खेल में ही
वो भूल जाती थी खिलौना
और मैं भूल जाता था
दिन भर की थकन

एक रोज़
एक खिलौना था मेरे पास
उसके सवाल का जवाब
उसका प्यारा खिलौना
चिरप्रतीक्षित खिलौना

और अब वो
सिर्फ खिलौने से खेलती है
दिन भर खेलती है

रोज़ शाम को घर पहुचते ही
मेरा खिलौना अपने खिलौने के साथ
दौड़ कर आता है और...
अब उसी के साथ खेलता है |

सोचता हूँ
ये दूसरी दुनिया मैंने ही तो दी है
और थकन अब याद रहती है
हर रोज़ |

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