Friday 26 April 2013

तुम मिलोगी मुझे

तुम कदम बा कदम तेज़ होते गए
मैं हरएक सांस पे जैसे थमता गया
दोनों के दरमियाँ भीड़ भरती रही
दोनों के बीच कोहरा सा जमता गया ||

एकटक मेरी नज़रें तुम्हें तकती रहीं
पर मुड़ी तुम नहीं एकपल के लिए
धुंध होती रही आँख की रौशनी
बुझने से लगे राह के सब दिए ||

मैं अकेला सनम बस ख्यालों में गुम
सोचता ही रहा जाग कर रात भर
तुम मिलोगी मुझे तुम मिलोगी मुझे
तुम मिलोगी मुझे या जाएगी ये उमर ||

(23.04.1994)

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