Saturday 6 April 2013

प्रेम मेरा मझधार

प्रेम शब्द की
इस समाज में
जो भी स्थापित
परिभाषा है
तुम उसके उस पार खड़ी... प्रिये
मैं पड़ा इस पार

मैं पड़ा इस पार
चिल्ला कर पूछ रहा हूँ
क्या मुझसे है प्यार
क्या मुझसे है प्यार
कम से कम इतना कहती
सुनता है संसार... प्रिये
मैं खड़ी इस पार

मैं खड़ी इस पार सखे
सब लाग लपेट करेंगे
बातों से ही अपनी
हर घर के पेट भरेंगे
निर्मोही संसार... प्रेमवर
मैं खड़ी इस पार

ऋतुराज के काज
मन मेरा पल पल पर पीर धरे
तीर तुम्हारा पार
BP 604
कंपन शरीर करे है
राधिके ... प्रेम मेरा मझधार
तुम खड़ी उस पार ।। 

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