Friday 13 April 2012

एक कहानी बन जाने तक...

एक अनुरोध - रचना को गंभीर स्वर में माध्यम गति से विराम का ध्यान रखते हुए ही पढ़े

1. अलविदा

पास बैठी हो कब से
कुछ बोलती क्यूँ नहीं
क्या कुछ भी नहीं है ?

कल तक तो नहीं था 
ऐसा कुछ भी |
आखिर कुछ तो कहो !

क्या सुनना चाहता हूँ
जानता तो हूँ 
बहुत कठिन है 
मेरा सुनना और 
तुम्हारा कह पाना |

तुम जा रही हो
हमेशा के लिए
किसी और की होकर |

2. एक फूल 

तुम जा रही हो
और तुम्हें  
तुम्हारी दी
हर चीज़ वापस चाहिए |

कुछ खत
एक तस्वीर 
और एक वो 
आंसुओं में भीगा रुमाल|

मगर
ये फूल ना लौटाऊंगा
यही तो है
सब कुछ
तुम्हारा प्यार
तुम्हारे खत
तुम्हारी याद
और शायद
तुम 

3. लाल जोड़ा 

कितनी सुन्दर लगती हो 
लाल जोड़े में
कितनी सुन्दर
बिलकुल मेरे सपनों जैसी |

सब खुश हैं 
मुझे और तुम्हे छोड़ कर |

कितने और कितने तरह के
तोहफे हैं
मैं क्या दूं  ?

तुम्हारी याद ही तो है 
मेरे पास 

नहीं ! वो नहीं दूंगा 

क्या कहूँ 
क्यूँ परेशान हूँ 
काश !
मेरे लिए पहना होता 
ये लाल जोड़ा |

4. वो फूल 

एक रोज अचानक 
एक सूखा हुआ फूल 
बन्द पन्नों से सामने आ गिरा 
लगा की तुम आ गयी
शुष्क आँखें, वही मूक प्रश्न !

तुम भूली नहीं ?
इतने लंबे अंतराल में भी 

क्या कहूँ
मैं तब भी बेबस था 
आज भी निरूत्तर हूँ
मैं तब भी 
रोक नहीं पाया था 
और आज भी 
वापस नहीं ला सकता 
तुम्हारी डोली |

5. मेरे लिए 

कल काफी रात तक जगता रहा 
भूखा प्यासा
फिर कब नींद आई
पता नहीं 
और छत पर ही सो गया |

पुरानी आदतें हैं
जाते जाते जायेंगी 
भूल गया था 
तुम नहीं आओगी 
पराई हो गयी हो |
बस यही याद था 
तुम्हारा व्रत है 
करवा चौथ का
मेरे लिए |

6. इंतज़ार 

कल 
मेरे आस पास थी 
तुम
आवाज़ भी दी तुमने
मगर 
चुपके से 
एक आहट
कि मैं घूम जाऊं
तुम्हारी ओर
मगर जान ना पाऊँ
कि
तुमने पुकारा है |

मैं मुड़ा भी 
देखा भी 
और पुकारा भी 
तुम्हे
लेकिन तुम चली गयीं

ये क्या था ?
एक
लंबे अंतराल कि झिझक
या मजाक 
मेरे इंतज़ार का 

7. याद 

उस रात 
स्वप्न में कुछ देख कर
तुम चीख पड़ी थी
दर्द से भरी चीख
असहाय सी चीख

तुम्हारा स्वप्न था 
तुम भूल गयी
लेकिन मैं जाग रहा था
और आज भी 
डरता हूँ
आँख बन्द होते ही
फिर गूंजेगी 
वही आवाज़ 
नवीनsssss!

क्या देखा था 
पता नहीं
पर नाम मेरा ही था 
चीख में 
मुझे पुकारा था 
मदद के लिए 
या डर गयी थीं 
मुझी से 

8. तुम्हारी याद  

तुम कहती हो 
भूल जाऊं तुम्हे 
कोशिश कर के देखूं

निरर्थक प्रयास होगा
असंभव है 
तुम्हे भूल पाना 

जो तुम्हारी यादे हैं 
उन्हें मधुर स्मृतियाँ ना समझना 
वे व्यंग हैं 
जो स्वप्न करते हैं 
वे विषैले दंश हैं 
जो मेरे ह्रदय पर होते हैं 
कैसे भूल जाऊं तुम्हे 

वक्त के साथ सारे घाव भर जाते हैं 
तुम कोई घाव नहीं हो 
तुम कोई पुन्य भी नहीं हो
जो भुला देना चाहिए 

मेरा वर्तमान 
तुम्हारा दिया श्राप है 
इसे तो साथ रहना ही है
तुम्हारी याद बन कर 
निरंतर 
आजीवन
अंत तक |

9. वो सिन्दूर कि डिब्बी

वो सिन्दूर की डिब्बी 
आज भी रक्खी है 
यद्यपि तुम ब्याहता हो 
फिर भी ...

तुम्हारा मोह नहीं छूटता है 
तुम्हारा पाश नहीं छोड़ता है 
जानती है 
पाप है, अभिशाप होगा 
फिर भी ...

एक रट है तुम्हारे नाम की
ये आज तक है तुम्हारे नाम की
मानती है 
तुम्हारी राह तकना व्यर्थ है 
फिर भी ...

तुम और तुम्हारे लिए इंतज़ार 
तकदीर बना चुकी है 
सच जानती है, मानती है 
फिर भी ...

इसे पहले इंतज़ार था 
तुम्हारी मांग में चढ़ने का 
और अब है 
तुम्हारी मांग ............. |

10. एक कहानी बन जाने तक 

मैंने अपने घर के 
सारे दरवाज़े - सारी खिड़कियाँ 
बन्द कर रक्खी हैं 
फिर भी 
तुम्हारी याद चली आती है 

मेरे अंतर्मन मन से 
घर के आँगन तक 
सब तरफ घूमती है 
अतीत के पृष्ठों को पलट देती है 
और 
मुझे परेशान करके चली जाती है
जाने कहाँ ?
जाने कैसे ?
जबकि 
कोई झरोखा, कोई रास्ता 
खुला नहीं है 

तुम रोकती क्यूँ नहीं उसे 
ऐसे आने से |

मेरी जिंदगी की जिल्द खुल गयी है 
उसे रोको
इनसे ना खेले
मैं जुड़ने की कोशिश कर रहा हूँ
रोक लो
बस
एक कहानी बन जाने तक |

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