एक थाली में चार चम्मचों से,
पांच यार नहीं खाते
पता नहीं, प्यार बढ़ा है या के ख़म है अब
पता नहीं, प्यार बढ़ा है या के ख़म है अब
जूठा, तब मीठा हुआ करता था, के कम है अब
आखरी कौर कि वो तलवार बाजि़यां,
वो चम्मचों के युद्ध,
वो चम्मचों के युद्ध,
वो छिना झपटी, वो रगड़ घिस
वो तू तू मैं मैं सरेशाम,
वो तू तू मैं मैं सरेशाम,
अब नज़र नहीं आते |
एक थाली में चार चम्मचों से,
एक थाली में चार चम्मचों से,
अब पांच यार नहीं खाते |
उम्र बदली तो बदल गये हैं, तौर तरीके भी
गले मिलने की जगह हाथ मिलाना सीखे
मिलने जुलने के सीखे हैं कुछ और सलीके भी
दाल चावल पे जीरे घी का तड़का,
उम्र बदली तो बदल गये हैं, तौर तरीके भी
गले मिलने की जगह हाथ मिलाना सीखे
मिलने जुलने के सीखे हैं कुछ और सलीके भी
दाल चावल पे जीरे घी का तड़का,
संग गालियों के चटख मसालेदार,
तीखे तगड़े खड़े अचार नहीं खाते |
एक थाली में चार चम्मचों से,
तीखे तगड़े खड़े अचार नहीं खाते |
एक थाली में चार चम्मचों से,
बैठ के पांच यार नहीं खाते |
* ख़म = शिथिल
* ख़म = शिथिल
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