Monday 9 April 2012

हिचकी

जब एक ही हिचकी आई थी , ये बात समझ ना आई थी ,
ये कैसे याद किया तुमने, मन कैसे बांध लिया तुमने,
पूरा दिन औ आधी रात गई, एक ही हिचकी कि याद भई,
क्या दिल फिर ना बेचैन हुआ, ना स्वप्न कोई उस रैन हुआ,
तरकीब कौन सी कैसे की, आती थी हिचकी वैसे भी,
ये बात समझ ना आई थी, जब एक ही हिचकी आई थी ,
ये कैसे याद किया तुमने ...

फिर नींद रही आधी कच्ची , फिर आयी नहीं कोई हिचकी,
सब रात गयी बौराई सी, और आँख खुली अलसाई सी,
अब सोच रहा हूँ सपना था, मुश्किल है होना घटना का,
उलझनों में कितनी भटका हूँ,अब तक हिचकी में अटका हूँ,
ये बात समझ ना आई थी, जब एक ही हिचकी आई थी ,
ये कैसे याद किया तुमने ...

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