Sunday 15 April 2012

मैं और मय

मैंने पहले मय को ढूँढा था
जीवन में मय को गूंदा था
मय ही जीवन में रौनक था
मय कजरा झुमका बूंदा था

मैं पर मय पर मैं छाया था
सब भूल था भरमाया था
थी नई अदा इठलाया था
धुन में अपनी इतराया था

मैंने मय को परिभाषा दी
फिर मय ने मैं को भाषा दी
मैं ने फिर मय अभिलाषा की
छाई मैं पर मय त्राषा सी

मैं ने मय को अवतार दिया
फिर मैं ने मय स्वीकार किया
मय ने मैं पर अधिकार किया
फिर मय ने मैं को मार दिया ||
(22.07.94)

No comments:

Post a Comment