Monday 9 April 2012

ऐ नियति!

ऐ नियति मेरे जीते जी एक बार मुझे मिलना जरूर
मैं भी तो देखूं किसविध तू, कर देती सपने चकनाचूर |

तू मुई हाथ कि रेखाओं की हेर-फेर में माहिर है
बहुतों कि होनी देखी है, ये हर होनी से जाहिर है
एक बार तेरे भी माथे पे बल, मैं भी देखूँगा जरूर
ऐ नियति मेरे जीते जी एक बार मुझे मिलना जरूर |

क्या मेरी करनी का फल और क्या तेरी खुरापात
मैं डाल-डाल तू पात-पात, दे एक हाथ ले एक हाथ
लेखे पे तेरे, तेरी लेखनी, एक बार मैं तोडूंगा जरूर
ऐ नियति मेरे जीते जी एक बार मुझे मिलना जरूर |

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