Monday 9 April 2012

चलती जाती है जिंदगी...


दुविधाओं के दोराहे, सही गलत के मोड़ हैं
कुछ भी कर लो, सुकूं कहाँ, पाती है ...जिंदगी |

पांव पसारूं थोड़ा रुक लूं, दम थोड़ा सा ले लूं
दो चार कदम चलती है, थक जाती है ...जिंदगी |

कंधों पे लादा, नहीं सधा, रीढ़ मुड़ गयी लगती है
पछुआ भी चलती है तो, कंप जाती है ...जिंदगी |

बचपन बीता सो बीत गया अब इत्ती सी रह जाती है
कुछ बालिश्तों में बाकी, नप जाती है ...जिंदगी |

ठन्डे पानी के कुछ छींटे, बरगदी छावं के एक दो पल
जी सकने की नौबत ही कहाँ, पाती है ...जिंदगी |

1 comment:

  1. Good work sirji. I also say Something.

    दादी का चश्मा
    नाक चढ़ खिसके
    दादी टिकाए
    पर ढीठ चशमा
    फिर खिसक जाए |

    ले सुई धागा
    आँख में चश्मा चढ़ा
    कथरी सिले
    टांका पे टांका सिले
    धागा न डाल सके |

    अम्मा भोर में
    झाडू -बुहारी करे
    उपले पाथे
    तब नहाए -धोए
    दाल -रोटी बनाए |

    नागपंचमी
    माँ जलेबी बनाए
    भाई-बहन
    सब साथ में खाएं
    बहुत सुख पाएं |

    होली -दिवाली
    दशहरा -संक्रांति
    गुझिया-खीर-
    हिरसे औ’ मुगौड़े
    माँ बनाए -खिलाए |

    ReplyDelete