दुविधाओं के दोराहे, सही गलत के मोड़ हैं
कुछ भी कर लो, सुकूं कहाँ, पाती है ...जिंदगी |
पांव पसारूं थोड़ा रुक लूं, दम थोड़ा सा ले लूं
दो चार कदम चलती है, थक जाती है ...जिंदगी |
कंधों पे लादा, नहीं सधा, रीढ़ मुड़ गयी लगती है
पछुआ भी चलती है तो, कंप जाती है ...जिंदगी |
बचपन बीता सो बीत गया अब इत्ती सी रह जाती है
कुछ बालिश्तों में बाकी, नप जाती है ...जिंदगी |
ठन्डे पानी के कुछ छींटे, बरगदी छावं के एक दो पल
जी सकने की नौबत ही कहाँ, पाती है ...जिंदगी |
Good work sirji. I also say Something.
ReplyDeleteदादी का चश्मा
नाक चढ़ खिसके
दादी टिकाए
पर ढीठ चशमा
फिर खिसक जाए |
ले सुई धागा
आँख में चश्मा चढ़ा
कथरी सिले
टांका पे टांका सिले
धागा न डाल सके |
अम्मा भोर में
झाडू -बुहारी करे
उपले पाथे
तब नहाए -धोए
दाल -रोटी बनाए |
नागपंचमी
माँ जलेबी बनाए
भाई-बहन
सब साथ में खाएं
बहुत सुख पाएं |
होली -दिवाली
दशहरा -संक्रांति
गुझिया-खीर-
हिरसे औ’ मुगौड़े
माँ बनाए -खिलाए |