Thursday 26 April 2012

आज एक तारा उगा नहीं

मैं और मेरा आसमान
और कुछ टिमटिमाते तारे;
यही है मेरी शाम की महफ़िल |
एक बार, रोज ही पूछ लेते है
मौसम का हाल
कुछ नई ताज़ा
और फिर, कल मिलने का वादा |

शहर की जगमगाती जिंदगी
रात को स्याह रात होने नहीं देती;
शहर के धूल की चादर
देर रात होने पर भी
जाती नहीं है,
और बहुत दूर तक ढक देती है
मेरे आसमानी रिश्तों को |

आज पच्छिम की तरफ
कुछ धुंध ज्यादा थी
एक साथी मेरा दिखा नहीं |
मेरे शरीर का पच्छिमी हिस्सा
तब से कुछ सुन्न सा है;
और ये खालीपन
कल साँझ तक तो रहेगा ही |

अब किसी से कहूँ भी तो क्या
कोई क्या समझेगा कि
आज एक तारा उगा नहीं !!

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